भारतीय लोकतंत्र और एकता का प्रतीक
अशोक हॉल

अशोक हॉल

अशोक हॉल राष्ट्रपति भवन के अत्यधिक आकर्षक और सुसज्जित कक्षों में से एक है। रोचक बात यह है कि कलात्मक रूप से निर्मित विशाल यह स्थान अब महत्त्वपूर्ण समारोहिक आयोजनों, विदेशों के मिशनों के प्रमुखों के पहचान-पत्र प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे पहले स्टेट बॉल रूम के लिए उपयोग में लाया जाता था।

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इस कमरे की छत और फर्श दोनों का ही अपना आकर्षण है जबकि फर्श पूर्ण रूप से लकड़ी का बना हुआ है और इसकी सतह के नीचे स्प्रिंग लगे हुए हैं, अशोक हॉल की छतें तैल पेंटिंगों से सुसज्जित हैं।

छत के केंद्र में एक चमड़े की पेंटिंग है जिसमें पारसी सात कज़ार शासकों में से दूसरा शासक फतह अली शाह का अश्वारोही चित्र दिखाया गया है जो कि अपने 22 पुत्रों की उपस्थिति में एक बाघ का शिकार कर रहा है। 5.20 मीटर लंबी और 3.56 मीटर चौड़ी यह पेंटिंग फतह शाह ने स्वयं इंग्लैंड के जार्ज चतुर्थ को भेंट स्वरूप प्रदान की थी। लॉर्ड इरविन के कार्यकाल के दौरान भेंट की गई कलाकृति को लंदन के भारत ऑफिस लाइब्रेरी से मंगाया गया था और स्टेट बॉलरूम की छत पर लगाई गई थी जैसा कि उस समय इसे जाना जाता था। कोई इसे एक दृष्टिभ्रम, थ्री डी इफेक्ट और पेंटर की उत्कृष्टता भी कह सकता है परंतु जब कोई भी पेंटिंग में फतह अली शाह की आंखों में कक्ष के किसी भी कोने से देखता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह केवल देखने वाले को ही देख रहा है।

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यह विश्वास किया जाता है कि लेडी विलिंग्डन की इच्छा इस पेंटिंग को अलग से रखने की नहीं थी और इसलिए उसमें इतालवी कलाकार, टोमासो कोलोनैलो को बुलाया। 12 भारतीय कलाकारों की सहायता से कोलोनैलो ने सेंट्रल फोरेस्ट थीम को शीर्ष सतह तक आगे बढ़ा दिया। फारसी अभिलेख के साथ चार और शिकार संबंधी दृश्य अशोक हॉल की छत को सुंदर बनाने के लिए टंगे है। हॉल की दीवारें शाही जुलूस का प्रदर्शन करती हैं जबकि छतों को सीधे पेंट किया गया था, दीवारों को विशाल लटके हुए कैनवस से पूरा किया गया था। समस्त दीवारों और छतों की पेंटिंग का कार्य जून 1932 में आरंभ किया गया और अक्तूबर, 1933 में पूरा किया गया। कोलोनैलो ने भित्तिचित्र (फ्रेस्को) को अशोक हॉल में एक अटपटी जगह पर हस्ताक्षरित किया। आगंतुकों के लिए इस हस्ताक्षर को ढूंढना बड़ा ही रोचक होगा।

छह बेल्जियम कांच के झूमरों की चमक से हॉल अपने आगंतुकों को आकर्षित करने से नहीं चूकता है। ऑर्केस्ट्रा के लिए स्थान के रूप में स्टेट बॉल रूम में एक मचान भी डिजायन किया गया था, तथापि अब यह महत्वपूर्ण समारोहों के दौरान राष्ट्रगान बजाने के लिए प्रयोग किया जाता है। दूसरी ओर, तीन गलियारे वातायन का एक साधन है जो हॉल में ताजी हवा देते हैं। जबकि अशोक हॉल के फ्रेंच विंडो से मुगल गॉर्डन का शानदार दृश्य दिखता है। दीवारें और स्तंभ पीले ग्रे मार्बल से बनाए गए हैं, फर्श और छत पर किए गए बेहतर कार्य इसका विरोधाभास है। इस जुएल बॉक्स के अन्य प्रमुख बिंदु हैं, पारसी कवि निजामी और एक फारसी महिला की पेंटिंग। ये अशोक हॉल के क्रमश: दक्षिणी और उत्तरी मेहराब के पीछे रखे गए हैं

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निजामी: तैल कैनवास पेंटिंग 12वीं सदी के फारसी कवि निजामी गंजवी को दर्शाती है जिसका पूरा नाम जमाल अद-दिन अबु मुहम्मद इलियास-इब्न युसूफ- इब्न- जकी था। फारसी साहित्य के रोमानी महाकाव्य के प्रख्यात कवि, निजामी फारसी ने महाकाव्य लिखने की अनौपचारिक शैली पेश की। उसके कार्य को अफगानिस्तान, निजाम और तजाकिस्तान के मध्य एशियाई क्षेत्र में बड़े सम्मान के साथ देखा जाता है।

पारसी महिला: पारसी महिला:पारसी महिला की तैल कैनवास पेंटिंग फारसी पोशाक में एक महिला को प्रस्तुत करती है। अपने हाथ में एक बर्तन पकड़े हुए पारसी महिला को एक अलंकृत मुकुट से सुसज्जित किया गया है। इन दोनों पेंटिंग के चित्रकार अज्ञात हैं।

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विशिष्ट कलाकृतियां अशोक हॉल का एक भाग हैं। इसमें एक पेंडुलम वाली घड़ी शामिल है जो इंग्लैंड में बनाई गई थी और इसके ऊपर कुकी एंड कैलवी लिमिटेड, कलकत्ता द्वारा ब्रिटिश क्लॉक ऐनफिल्ड लिखा हुआ है। फारसी शैली के 32 मीटर लंबे और 20 मीटर चौड़े कालीन को अशोक हॉल की भव्यता को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से बनाया गया था। कहा जाता है, ‘लुट्येन्स विशेष रूप से उत्सुक था कि सरकारी आवास के लिए कालीन की बुनाई महान फारस काल के डिजायन और तकनीक के स्तर को पुन: जाग्रत कर दे।’ इसके अतिरिक्त क्रिस्टोफर अस्सी द्वारा नोट किया गया कि, ‘... अन्य राजकीय कक्षों के लिए 16वीं और 17वीं शताब्दी की वास्तविक फारसी कृतियों को उधार लिया गया ताकि केवल पैटर्न ही नहीं बल्कि रंग और सामग्री भी दुबारा बनाई जा सके और इस प्रकार शाह अब्बास के युग को जीवित किया जा सके।’ कहा जाता है कि दो वर्ष में कालीन बुनने के लिए 500 बुनकरों को लगाया गया। अशोक हॉल के कालीन गहरे लाल रंग के हैं और इनमें पर्याप्त पुष्पीय और वानस्पतिक रूपांकन हैं और इन्हें आठ दशकों से भी अधिक समय तक प्रयोग होने के बाद भी संरक्षित रखा गया है।