राष्ट्रपति का हाउस होल्ड कैवेलरी (अश्वारोही सेना)
राष्ट्रपति के निजी सैनिकों के रूप में माना जाने वाला, राष्ट्रपति अंगरक्षक (पीबीजी) राष्ट्रपति की हाउसहोल्ड सेरेमोनियल कैवलरी रेजिमेंट है, जो राष्ट्रपति भवन में तैनात है। यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी कैवलरी रेजिमेंट है और भारतीय सेना की सभी रेजिमेंटों में वरिष्ठतम रेजिमेंट है।
स्थापना और प्रारंभिक इतिहास
राष्ट्रपति के अंगरक्षक प्रेजिडेट्स बॉडीगार्ड की स्थापना वर्ष 1773 में गवर्नस बॉडीगार्ड के रूप में बनारस में की गई थी जिसका 250 वर्षों का इतिहास है। बनारस के राजा चेत सिंह ने पचास घोड़े और पचास सैनिक प्रदान कर इस रेजिमेंट गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। मूल चार्टर में रेजिमेंट को युद्ध के समय गर्वनर के साथ जाने और शांति के समय समारोहिक अंगरक्षक के रूप में सेवा करने का आदेश दिया गया था। रेजिमेंट ने इस भावना को अपने बाद के नए नामकरण के रूप में अर्थात् 1774 में गवर्नर जनरल के अंगरक्षक और 1857 में वायसराय के अंगरक्षक के रूप में बनाए रखा जो भारत की स्वतंत्रता तक जारी रही।
प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेजिमेंट का आधुनिकीकरण किया गया और 1942 में इसने बख्तरबंद कार्मिक वाहन प्राप्त किए । वर्ष 1944 तक, इसे 44 भारतीय एयरबोर्न डिवीजन के 44वीं डिवीजन टोही स्क्वाड्रन का नाम दिया गया, और इसे प्रथम एयरबोर्न कैवलरी रेजिमेंट के रूप में स्थापित किया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और 1947 से पहले, रेजिमेंट ने घुड़सवार सेना, बख्तरबंद और हवाई सेना इकाई के रूप में अपनी भूमिकाएँ निभाईं हैं। स्वतंत्रता के बाद, रेजिमेंट को दो भागों में विभाजित कर दिया गया, जिसमें से आधे घोड़े, सैनिक और उपकरण भारत के गवर्नर जनरल के अंगरक्षक भारत के लिए दिए गए, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में तैनात किया गया, जबकि शेष अंगरक्षकों को पाकिस्तान भेज दिया गया।
वर्ष 1950 में भारत के गणतंत्र में बनने के साथ, रेजिमेंट को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति के अंगरक्षक (प्रेजिडेंट्स बॉडीगार्ड) के रूप में नया नाम दिया गया, रेजिमेंट माननीय राष्ट्रपति और भारत के सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर की सेवा की अपनी समृद्ध विरासत को बनाए हुए है।
कर्तव्यों का चार्टर
मूल रूप से घुड़सवार सेना इकाई के रूप में स्थापित इस रेजिमेंट का कार्य राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में कार्य करना है। पिछले कुछ वर्षों में रेजिंग चार्टर रेजिमेंट के एक अनूठे दोहरे अधिदेश में परिभाषित किया गया है, जो राष्ट्रपति भवन में पैराशूट फॉर्मेशन और समारोहिक भूमिका के साथ एक ऑपरेशनल भूमिका में बदल जाता है। रेजिमेंट के पास अपने समारोहिक कर्तव्यों के लिए 99 घोड़े हैं और ऑपरेशनल ड्यूटी के लिए अधिकृत बख्तरबंद वाहन भी है। रेजिमेंट का बहुआयामी अधिदेश सुनिश्चित करता है कि सैनिक घुड़सवार सेना, बख्तरबंद वाहन चालक दल और के रूप में इसके बहुआयामी कार्य रेजिमेंट को विश्व की सैन्य इकाइयों में इसे बेमिसाल बनाएं।
सेरिमोनियल एक्सिलेंस (समारोहिक उत्कृष्टता)
शांति काल में, राष्ट्रपति के अंगरक्षक मुख्य रूप से समारोहिक कर्तव्य निभाते हैं, जो न केवल भारतीय सेना का बल्कि विश्व मंच पर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। रेजिमेंट हर समय विभिन्न राष्ट्रीय/आंतरिक प्रोटोकॉल कार्यक्रमों में विश्व स्तरीय प्रदर्शन करने के लिए सुसज्जित रहती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से, राष्ट्रपति के अंगरक्षक दल ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों समारोहों में 1 गवर्नर जनरल और भारत के 15 राष्ट्रपतियों को सुरक्षा प्रदान की है, जो वर्ष में लगभग 140 समारोहिक परेड में अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। इन समारोह में लगभग 70 अवसरों पर सैनिक अपने सुंदर घोड़ों पर सवार होकर भाग लेते हैं, जिनमें गणतंत्र दिवस परेड, बीटिंग ऑफ़ रिट्रीट समारोह, संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति का अभिभाषण और राष्ट्रपति भवन में साप्ताहिक सेरेमोनियल गार्ड का परिवर्तन शामिल है।
राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के लिए अन्य उल्लेखनीय अवसरों में राष्ट्रपति के साथ-साथ राष्ट्रपति भवन के प्रतिष्ठित कोरिडोर्स में उपस्थित रहना, राजदूतों और उच्चायुक्तों द्वारा परिचय-पत्र प्रस्तुत करना, राष्ट्राध्यक्षों का दौरा, नागरिक और सैन्य अलंकरण समारोह तथा भारत के प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही राष्ट्रपति के स्वागत समारोह (एट होम) कार्यक्रमों के दौरान भव्य उपस्थिति सुनिश्चित करना शामिल है।
समारोहिक परेड के दौरान राष्ट्रपति के अंगरक्षक की सटीकता और पेशेवर गुणता उनके कठोर प्रशिक्षण का परिणाम है, यह प्रशिक्षण सैनिक और घोड़े दोनों को बिना किसी बाधा के शानदार प्रदर्शन के लिए पूरी तरह तैयार रहने के लिए भी सुनिश्चित करता है। राष्ट्रपति के अंगरक्षक के चरित्र की पहचान उसका अटल ध्यान और अनुकरणीय सैन्य आचरण है, जो रेजिमेंट की कर्तव्य के प्रति उसकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
सैनिक, समारोहिक वर्दी पहने हुए स्थिरता बनाए रखने में असाधारण दक्षता दिखाते हैं, अपने भालों को लंबे समय तक स्थिर रखते हुए वे प्राय: दो से तीन घंटे से भी अधिक समय तक स्थिर खड़े रहते हैं यह असाधारण क्षमता उनके कठोर प्रशिक्षण और दृढ़ निष्ठा का प्रमाण है। वर्षों से राष्ट्रपति के अंगरक्षक के सदस्यों ने अत्यधिक अनुकूलता, धैर्य और सहनशक्ति विकसित की है, जिससे वे समारोहिक कार्यक्रमों के उत्सवपूर्ण और गतिशील वातावरण के बीच भी अपना ध्यान स्थिर रखते हैं। 'अंगरक्षक' की एक मौन उपस्थिति होती है, जिन्हें देखा तो जाता है,परंतु इनकी प्रतिबद्धता के बारे में शायद ही कभी सुना जाता है।
सुरक्षा की सदैव अटल भावना, अटूट समर्पण, सर्वोच्च निष्ठा और सत्यनिष्ठा, अनुकरणीय सैन्य आचरण, उत्कृष्ट घुड़सवारी कौशल, शारीरिक फिटनेस और 'अंगरक्षक कर्तव्यों' के प्रति पारंपरिक प्रतिबद्धता और गर्व राष्ट्रपति के अंगरक्षक की प्रमुख विशेषताएं हैं है।
राष्ट्रपति के अंगरक्षक एक अद्वितीय सैन्य इकाई है जो हमारे देश, राष्ट्रपति भवन और भारतीय सेना के इतिहास से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह पूरे वर्ष राष्ट्रपति भवन में न केवल भारतीय सेना, बल्कि पूरे राष्ट्र का शो-विंडो है। यह रेजिमेंट भारत के सांस्कृतिक और पारंपरिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग है, तथा निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण इसके उच्चतम मानक हैं। राष्ट्रपति की निजी टुकड़ियां राष्ट्रीय गौरव और प्रतिबद्धता का एक अनूठा प्रतीक हैं, जो समारोहिक और ऑपरेशनल दोनों भूमिकाओं को विशिष्टता से निभाती हैं।
युद्धभूमि में योगदान
राष्ट्रपति के अंगरक्षक को स्वतंत्रता-पूर्व सात युद्ध सम्मानों से सम्मानित किया गया है। स्वतंत्रता के बाद की प्रमुख ऑपरेशनल सेवाओं में ये शामिल हैं:
• 1947-48: स्वतंत्रता के बाद रेजिमेंट ने विशेष रूप से दिल्ली में राष्ट्रपति भवन और आस-पास के क्षेत्रों की सुरक्षा के मामले में दिल्ली को स्थिरता प्रदान की।
• 1962: चीन-भारत संघर्ष के दौरान चुशूल में तैनाती।
• 1965: भारत-पाक युद्ध के दौरान ऑपरेशन एब्लेज में गदरा रोड पर तैनाती।
• 1987-88: श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के पैराट्रूप टुकड़ी के रूप में तैनाती।
• 1994 से वर्तमान तक दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र, ऑपरेशन मेघदूत में सियाचिन ग्लेशियर में वार्षिक तैनाती।
इसके अतिरिक्त, नामित किए जाने वाले सैनिक जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पूर्वोत्तर में विभिन्न ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेवा प्रदान करते रहते हैं, जहां उन्हें बख्तरबंद संरचनाओं के साथ सामरिक गतिविधियों में भी तैनात किया जाता है।
राष्ट्रपति सम्मान और पुरस्कार
राष्ट्रपति के अंगरक्षक को ‘दुर्लभतम’ राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। उन्हें प्राप्त हो चुके उल्लेखनीय सम्मानों में शामिल हैं: -
स्टैंडर्ड/कलर- राष्ट्रपति अंगरक्षक एकमात्र ऐसा रेजिमेंट है जिसे माननीय राष्ट्रपति की सुरक्षा करते समय दो मानक अर्थात्' स्टैंडर्ड ऑफ बॉडीगार्ड (वरिष्ठतम स्टैंडर्ड/कलर) और 'पीबीजी का रेजिमेंटल स्टैंडर्ड धारण करने की अनुमति है। दोनों मानक लगातार दो राष्ट्रपतियों द्वारा प्रदान किए गए थे, जो रेजिमेंट की विशिष्ट स्थिति को दर्शाते हैं।
• स्वतंत्र भारत का सबसे पहला स्टैंडर्ड, सबसे वरिष्ठ कलर (निशान) - 'स्टैंडर्ड ऑफ द बॉडीगार्ड, 1958 में राष्ट्रपति अंगरक्षक (पीबीजी) को प्रदान किया गया था, और उसी वर्ष 'रेजिमेंटल स्टैंडर्ड भी तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्रदान किया गया था। ''स्टैंडर्ड ऑफ बॉडीगार्ड और 'पीबीजी का रेजिमेंटल स्टैंडर्ड, दोनों को वर्ष 1963 में तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ एस. राधाकृष्णन द्वारा नए सिरे से प्रदान किया गया था।
• ‘'स्टैंडर्ड ऑफ बॉडीगार्ड को पुनः डिजाइन किया गया है तथा ‘पीबीजी के रेजिमेंटल स्टैंडर्ड को नवीनीकृत किया गया है तथा माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा छ: दशकों के बाद 16 नवंबर, 2024 को नए सिरे से प्रदान किया गया।
राष्ट्रपति की सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर - राष्ट्रपति के अंगरक्षक को 'राष्ट्रपति की सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर रखने का विशेषाधिकार प्राप्त एकमात्र रेजिमेंट होने का अनूठा गौरव हासिल है। राष्ट्रपति का सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर पहली बार 1953 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा 'अंगरक्षकों' को प्रदान किया गया था। पीबीजी को अब तक 14 मौकों पर राष्ट्रपति का सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया गया है।
घुड़सवारी खेल और पोलो
पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रपति के अंगरक्षक ने घुड़सवारी (इक्वेस्ट्रियन) में उत्कृष्टता के लिए अत्यधिक योगदान दिया है। राष्ट्रपति के अंगरक्षक ने घुड़सवारी खेलों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और भारतीय घुड़सवारी महासंघ स्तर की चैंपियनशिप में कई पदक हासिल किए हैं। रेजिमेंट को वर्ष 2024 में बैंगलोर में आर्मी इक्वेस्ट्रियन चैंपियनशिप ट्रॉफी से उल्लेखनीय रूप से सम्मानित किया गया है। उत्कृष्ट ऐतिहासिक पुरस्कारों में शामिल हैं:
• अर्जुन पुरस्कार: रेजिमेंट को घुड़सवारी खेल और पोलो में उत्कृष्टता के लिए दो अर्जुन पुरस्कार, अर्थात स्वर्गीय ब्रिगेडियर वीपी सिंह और कर्नल एचएस सोढ़ी, वीएसएम दोनों पुरस्कार प्राप्त करने का सम्मान प्राप्त हुआ है।
• एशियाई खेल पदक: मानद कैप्टन मिल्खा सिंह ने 1982 के एशियाई खेलों में शो जंपिंग में स्वर्ण पदक जीता।
• राष्ट्रीय रिकॉर्ड: मानद कैप्टन सज्जन कुमार ने 1993 में शो जंपिंग (प्वाइंट) में स्वर्ण पदक जीता और राष्ट्रीय रिकॉर्ड (195 सेंमी.) बनाया, जो 30 वर्षों तक कायम रहा।