भारतीय लोकतंत्र और एकता का प्रतीक
दरबार हॉल

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राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल की अत्यंत सादगी सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है

चूंकि यह निर्विवाद रूप से प्रेजीडेंशियल पैलेस का सर्वाधिक भव्य कक्ष है। रॉबर्ट बायरन, सुप्रसिद्ध इतिहासकार और कला आलोचक ने ठीक ही कहा है, ‘अपने लिए निर्धारित किए गए डिजायन के उच्च स्तर में लुटियन्स ने कहीं भी चूक नहीं की।’

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दरबार हॉल जिसे पहले थ्रोन रूम के नाम से जाना जाता था और जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार ने 15 अगस्त, 1947 को शपथ ली थी। 1948 में सी. राजगोपालाचारी ने भी भारत के गवर्नर जनरल के रूप में दरबार हॉल में शपथ ली थी। 1977 में राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के निधन के गंभीर अवसर पर दरबार हॉल को भारत के पांचवे राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने के लिए इस्तेमाल किया गया था। अब यहां राष्ट्र के माननीय राष्ट्रपति द्वारा असैन्य और सैन्य सम्मान दिए जाते हैं। नई सरकार के शपथ समारोह दरबार हॉल में ही आयोजित किए जाते हैं।

यह समारोह संबंधी हॉल जो राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल डोम के ठीक नीचे है, में तीन ओर से जाया जा सकता है, फ्रंट फोरकोर्ट स्टेप द्वारा छ: मीटर लंबे टीक के दरवाजे से होते हुए और दरबार हॉल के दोनों ओर एश ग्रे मार्बल एकाकार सीढ़ियों द्वारा। क्रिस्टोफर हस्सी ने कहा कि, ‘दरबार हॉल में पहुंचने का प्रभाव तत्काल, जबर्दस्त और बिलकुल मौन का अहसास दिलाने वाला है।’ इसकी 42 फुट ऊंची दीवारें सफेद मार्बल से सजी हुई हैं। गुंबद परिधि में 22 मीटर और भूमि से 25 मीटर ऊपर बताया जाता है। दुगुने गुंबदीय आकार के डोम के केंद्र में छिद्र सहित डबल डोम आकृति है जिससे दरबार हॉल में सूर्य की रोशनी प्रवेश करती है जो इसकी कला को स्पष्ट करती है। दरबार हॉल में इसकी छत से लटका हुआ 33 मीटर की ऊंचाई वाला एक अति सुंदर बेल्जियम कांच का झूमर दरबार हॉल को सुसज्जित करता है।

इसमें चार अर्द्धगोलाकार झरोखे हैं जिसमें से दो दक्षिण की ओर और दो पूरब की ओर है जिसमें आलंकारिक मेहराब और चापालंकरण गुंबद में उत्कीर्णित हैं। दरबार हॉल सफेद शीर्ष और सतह युक्त पीले जैसलमेर मार्बल से बने हुए स्तंभों से घिरा हुआ है। अटारी वातायन और प्रकाश की व्यवस्था करती है। भारी ज्यामितीय पैटर्न सहित चमचमाता मार्बल फर्श इस हॉल की शानदार आभा में और अभिवृद्धि करता है। रॉबर्ट बायरन ने ठीक कहा है, ‘पहले दो और तीन कदम बढ़ाने पर, केवल फर्श का पैटर्न इतना विशाल है कि आगंतुक की सांस रूक जाए और वह बिलकुल विस्मित रह जाए।’ दरबार हॉल के फर्श के लिए इस्तेमाल किया गया मार्बल बहुधा भारत से था। सफेद मार्बल मकराना और अलवर से प्राप्त किया गया था, ग्रे मार्बल मारवाड़ से, हरा मार्बल बड़ौदा और अजमेर से और गुलाबी अलवर, मकराना और हरिबाग से प्राप्त किया गया था। तथापि दरबार हॉल के लिए उपयोग किया गया मार्बल गहरी चॉकलेट रंग की किस्म, इटली से विशेष रूप से मंगाई गई थी।

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दीवार के साथ लाल वैलवेट पृष्ठभूमि में भगवान बुद्ध का एक पांचवी सदी की प्रतिमा रखी गई है। इस प्रतिमा के सामने राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है। इससे पूर्व, इस स्थान पर दो सिंहासन रखे गए थे। एक वायसराय के लिए और दूसरा, वायसराइन के लिए।

दरबार हॉल के कॉरीडोर में देश के प्रसिद्ध मूर्तिकारों द्वारा तराशे गए भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपतियों के आवक्ष प्रदर्शित किए गए हैं। हॉल में मार्बल की दीवारों पर वेंकटेश डी कृत महात्मा गांधी की आदमकद पेंटिंग, बीरन डी कृत सी. राजगोपालाचारी, गेरासिमोव कृत श्री जवाहरलाल नेहरू और जे.ए. लालकाका द्वारा बनाई गई डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की पेंटिंग हैं। भारत के स्वर्णिम राष्ट्रीय चिह्न सहित गहरे लाल रंग के छ: लंबे ध्वज दरबार हॉल को सुसज्जित करते हैं।

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