बैंक्वेट हॉल में पहुंचने के लिए लूट्येन्स की भव्य सीढ़ियों से जाना पड़ता है। बलुआ पत्थर से बनी और आकार में विशाल, 111 फुट लंबाई और 53 फुट चौड़ाई वाली ये सीढ़िया एक छोर पर बैंक्वेट हॉल तक जाती हैं और दूसरे छोर पर अशोक मंडप तक जाती हैं।
इन सीढ़ियों को पार करते समय ऐसा लगता है जैसे हम दरवाजों के भीतर हैं, तथापि यह ऊपर से खुला है और राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल डोम और आकाश का स्पष्ट नजारा यहां से दृश्यमान है। कहा जाता है कि पूरे भवन में केवल इसी स्थान से गुंबद को निकटता से देखा जा सकता है। लूट्येन्स की भव्य सीढ़ियों का, इसको वास्तुशिल्प संबंधी ब्योरों और श्रेष्ठता के कारण ‘पूरे भवन में अत्यंत स्मरणीय स्थानों में से एक के रूप में वर्णन किया गया था।’
सोपान के ऊपर एक गुफा में सर एडविन लूट्येन्स के आवक्ष को स्थान दिया गया है जिसके नीचे पत्थर में ‘आर्किटेक्ट ऑफ दिस हाउस’ खुदा हुआ है। इस आवक्ष को लॉर्ड माउंटबेटन के अनुरोध पर इंगलैंड में एचएएन मैड द्वारा तराशा गया था जबकि इसके विपरीत छोर पर महात्मा गांधी की एक लंबे कांसे की प्रतिमा खड़ी है।
राम वी सुतार द्वारा बनाई गई राष्ट्रपति भवन में महात्मा गांधी की केवल यहीं वास्तुकार संबंधी तराशी गई प्रस्तुति है। यह 25 जुलाई, 2013 को स्थापित की गई थी। यह प्रतिमा बापू के इन ज्ञानपूर्ण शब्दों द्वारा शोभायमान है ‘‘झूठ के बीच में, सच्चाई का वास है’’—महात्मा गांधी। राजभोज के दौरान और अन्य राजनयिक समारोहों, अपने सर्वोत्तम समारोहों में राष्ट्रपति के अंगरक्षक उन सीढ़ी सोपानों के साथ-साथ पंक्ति में खड़े होते हैं जिनसे पूरे समारोह की भव्यता बढ़ जाती है।