भारतीय लोकतंत्र और एकता का प्रतीक
राष्ट्रपति भवन का निर्माण

राष्ट्रपति भवन का निर्माण

12 दिसंबर को 1911 का दिल्ली दरबार किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया। दरबार में सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा जिसे लगभग एक लाख लोगों ने सुना, ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली करना था। कलकत्ता को वाणिज्य केंद्र के रूप में जाना जाता था जबकि दूसरी ओर, दिल्ली शक्ति और शान का प्रतीक थी। घोषणा के पश्चात, शाही आवास की खोज अत्यावश्यक हो गई थी। उत्तर का किंग्जवे कैंप पहली पसंद थी। एक ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुट्येन्स को भारत की नई राजधानी की योजना बनाने के लिए चुना गया और वह दिल्ली नगर योजना समिति का भाग थे जिसका कार्य स्थल और उसके नक्शे का निर्माण करना था। सर लुट्येंस और उनके सहयोगी, जो स्वच्छता विशेषज्ञ थे, को उत्तरी क्षेत्र यमुना नदी के समीप होने के कारण बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील लगा। इस प्रकार, दक्षिणी ओर की रायसीना पहाड़ी, जहां खुलादार और ऊंचा स्थान और बेहतर जल निकासी थी, वायसराय हाऊस के लिए उपयुक्त स्थान प्रतीत हुआ।

वायसराय हाऊस
वायसराय हाऊस 2

भारत के पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने सही कहा है, ‘‘इस पहाड़ी पर प्रासाद दृश्यावली का मुकुट लगती है। मीलों दूर से दिखने वाला यह प्रासाद क्षितिज पर एक ऐसे स्मारक की भांति स्थित है जो बिलकुल अलग प्रतीत होता है। यह इमारतों में एक कंचनजंघा है जिसे दिल्ली की गर्मी की धूल भरी धुंधलाहट तथा इसकी सर्दियों का कोहरा ढक देता है, अनावृत्त कर देता है और पुनः ढक देता है। एक आकर्षक ढांचा जो निकट भी और दूर भी लगता है, यह एकदम नजदीक प्रतीत होता है परंतु आवरण के पीछे छिप जाता है।’’

चुने गए स्थान की चट्टानी पहाडि़यों को विस्फोट से तोड़ा गया तथा वायसराय के आवास और अन्य कार्यालयी भवनों के निर्माण के लिए भूमि समतल की गई। इस स्थान पर शिलाओं ने मजबूत नींव के रूप में अतिरिक्त फायदा पहुंचाया। निर्माण सामग्री के लाने ले जाने के लिए इमारतों के चारों ओर विशेष तौर पर एक रेलवे लाइन बिछाई गई। चूंकि नगर की योजना नदी से दूर बनाई गई थी और दक्षिण में कोई नदी नहीं बहती थी इसलिए पानी की सभी जरूरतों के लिए जमीन के भीतर से पम्प द्वारा पानी निकाला गया।

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इस क्षेत्र की अधिकतर भूमि जयपुर के महाराजा की थी। राष्ट्रपति भवन के अग्रप्रांगण में खड़ा जयपुर स्तंभ दिल्ली को नई राजधानी बनाने की स्मृति में जयपुर के महाराजा, सवाई माधो सिंह ने उपहार में दिया था।

राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह वर्ष से अधिक समय लगा। लॉर्ड हॉर्डिंग, तत्कालीन गवर्नर जनरल तथा वायसराय जिनके शासन काल में निर्माण कार्य आरंभ हुआ था, चाहते थे कि इमारत चार वर्ष में पूरी हो जाए। परंतु 1928 के शुरू में भी इमारत को अंतिम रूप देना असंभव था। तब तक प्रमुख बाहरी गुंबद बनना शुरू भी नहीं हुआ था। यह विलंब मुख्य रूप से प्रथम विश्व युद्ध के कारण हुआ था। अंतिम शिलान्यास भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया और वह 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वायसराय हाऊस के प्रथम आवासी बने। मुख्य भवन का निर्माण हारून-अल-रशीद ने किया जबकि अग्रप्रांगण को सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभा सिंह ने बनाया। ऐसा अनुमान है कि इस महलनुमा इमारत के निर्माण में सात सौ मिलियन ईंटें और तीन मिलियन क्यूबिक फुट पत्थर लगा और तकरीबन तेईस हजार श्रमिकों ने काम किया। वायसराय हाऊस के निर्माण की अनुमानित लागत 14 मिलियन रुपए आई।

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आखिरी पत्थर भारत के वाइसराय और गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन, और 6 अप्रैल, 1 9 2 9 को नवनिर्मित वाइसराय हाउस के पहले अधिवासर द्वारा रखे गए थे। मुख्य भवन हरान-अल-रशीद ने बनाया था, जबकि फोरकोर्ट द्वारा किया गया था सुजन सिंह और उनके पुत्र सोभा सिंह यह अनुमान लगाया गया है कि सात सौ मिलियन ईंट और तीन लाख क्यूबिक फीट पत्थर इस विशाल संरचना के निर्माण के लिए चले गए थे जिसमें करीब 21 हजार मजदूर काम कर रहे थे। वाइसराय हाउस के निर्माण की अनुमानित लागत रू। 14 मिलियन

सर एडविन लुट्येंस की संकल्पना एक ऐसे भवन का निर्माण करने की थी जो आने वाली शताब्दियों तक खड़ा रहे। उनका मानना था, ‘‘वास्तुशिल्प अन्य किसी कला से कहीं अधिक प्राधिकारी की बौद्धिक प्रगति को प्रस्तुत करता है।’’ लुट्येंस इस भवन के वास्तुशिल्प और अभिकल्पना के बारे में बहुत संजीदा थे तथा प्राचीन यूरोपीय शैली को पसंद करते थे। एच आकार का भवन एक भव्य शैली में विस्तृत भौगोलिक भिन्नताओं को दर्शाता है।

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वायसराय हाऊस 8

इसके बावजूद, इस वास्तुशिल्पीय डिजायन में भारतीय वास्तुशिल्प की अनेक विशेषताएं समाहित की गई हैं। उदाहरण के रूप में, गुंबद सांची के स्तूप से प्रेरित था; छज्जे, छतरी और जाली तथा हाथी, कोबरा, मंदिर के घण्टे आदि जैसे नमूनों पर भारतीय छाप है। इस परियोजना में उनके सहयोगी हरबर्ट बेकर थे जिन्होंने नॉर्थ ब्लॉक और साऊथ ब्लॉक का निर्माण किया था। लुट्येंस और बेकर ने दिल्ली के बहुत सारे डिजायन बनाए जिनमें से अधिकांश को राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में संरक्षित और प्रदर्शित किया गया है।