राष्ट्रपति भवन का केन्द्रीय गुंबद (सेंट्रल डोम) भवन की अत्यंत विशिष्ट खूबियों में से एक है। फोरकोर्ट से 55 मीटर ऊपर इसकी चोटी पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा है। सेंट्रल डोम भवन से दुगुना ऊंचा है। गुंबद की सीमा बनाते हुए छोटे-छोटे मंडपीय छत हैं जिन्हें छतरियां कहा जाता हैं और ये आधे गुंबद फव्वारों पर औंधे पड़ा हुआ है।
वास्तुशिल्प की भारतीय शैली में विशेष रुचि न रखने वाले एडविन लुट्येन्स के दिमाग में भवन के निर्माण के लिए यूरोपियन शास्त्रीय शैली थी। तथापि कुछ भारतीय वास्तुशिल्प संबंधी शैलियां भवन के भाग के रूप में देखी जा सकती हैं जिनमें सेंट्रल डोम भी शामिल है। ऐसा कहा जाता है कि यह सांची के बौद्ध स्तूप से प्रेरित है। तथापि लुट्येन्स ने मुक्त रूप से इसको डिजायन करने में रोम के देवी-देवताओं के मंदिर के प्रति श्रद्धा रखी। गुंबद की सतह रेलिंग्स द्वारा घिरी हुई है और उसके लिए भी सांची के स्तूप को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। गुंबद तांबे की प्लेट से ढका हुआ है जो वर्षों से एक कालापान लिए हुए है।
राष्ट्रपति भवन का सेंट्रल डोम ही केवल वह आकृति है जो विजय चौक से दृश्यमान है। लुट्येन्स और उसके सहयोगी हरबर्ट बेकर के बीच ढाल के संबंध में विवाद था। बेकर को दो सचिवालय भवन निर्मित करने के लिए बुलाया गया था। उसने इन्हें राष्ट्रपति भवन के स्तर पर बनाने की योजना बनाई थी। लुट्येन्स ने संबंधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए परंतु बाद में इसकी त्रुटियां महसूस की। उसे समझ आ गया कि यदि अनुमति दी गई तो राष्ट्रपति भवन का आंगन विजय चौक से पूरी व्यापकता के साथ दिखाई नहीं देगा तथापि तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग, ने उनको भारी लागत के कारण सहमति नहीं दी। यह कहा जाता है कि लुट्येन्स ने बेकर को कभी माफ नहीं किया और न ही इस घटना के बाद बेकर से कभी बात की क्योंकि बेकर के सचिवालय ब्लॉक राष्ट्रपति भवन से अधिक ऊंचे दिखाई देते हैं जबकि विजय चौक से केवल सेंट्रल डोम ही दिखाई देता है।