अशोक के स्तंभ (अशोका पिलर्स) मौर्य कला के सर्वाधिक मशहूर उदाहरण हैं। राष्ट्रपति भवन, तीसरी शताब्दी पूर्व सैंड स्टोन ऑफ आशोक पिलर्स जिसे रामपुरवा बुल के नाम से जाना जाता है, को रखने में गौरवान्वित महसूस करता है। इसका नाम इसकी खोज के स्थान, बिहार में रामपूर्व के स्थान पर रखा गया है। रामपूर्व बुल राष्ट्रपति भवन के फोरकोर्ट प्रवेश पर केंद्रीय स्तंभ के बीच में एक तख्त पर रखा गया है।
रामपूर्व बुल बारीकी से शिल्पित मॉडल की वजह से ध्यान आकर्षित करता है जो कोमल मांस, संवेदनशील नासिका, सचेत कानों और मजबूत टांगों की बेहतर प्रस्तुति का प्रदर्शन करता है। यह भारतीय और फारसी तत्वों का एक मिश्रण है, जबकि आधार पर रूपांकन, औंधा कमल, रोजेट, पैलमेट और अकैंथस आभूषण भारतीय कृति नहीं हैं। द बुल कैपिटल भारतीय शिल्प कला की एक सर्वश्रेष्ठ कृति है। रामपूर्व बुल की मूर्ति मखमली प्रभाव पैदा करती है।
पांच टन के भार वाली यह अनमोल शिल्पकृति 1948 मे राष्ट्रपति भवन का हिस्सा बनी जब यह बर्लिंगटन हाउस, लंदन से वापस लायी गई जहां यह भारतीय कला के शानदार प्रदर्शन में भाग लेने के लिए ले जायी गई थी। इसकी वापसी पर अन्य शिल्पकृतियों के साथ रामपूर्व बुल को 1960 तक जनपथ पर राष्ट्रीय संग्रहालय बनने तक प्रदर्शन के लिए भवन में रखा गया। तथापि पंडित नेहरू और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इतिहास के इस अनमोल टुकड़े मे रुचि दिखाई और इसे जनता के देखने के लिए राष्ट्रपति भवन में रखने का निर्णय लिया।
बुल को दर्शाने के लिए सटीक स्थान निर्धारित करते समय कई सुझाव दिए गए। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की इच्छा थी कि बुल को राष्ट्रपति भवन में एक विशिष्ट स्थान पर रखा जाए। सुझाए गए स्थानों में राष्ट्रीय संग्रहालय प्रवेश (गणतंत्र मंडप प्रवेश) अथवा एक विशेष रूप से धूप और वर्षा से होने वाली क्षति से बचाने के लिए सीधी छतरी के अंतर्गत फोरकोर्ट थे। यह सिफारिश की गई थी कि बुल को सेंट्रल एशियन एंटीक्वीटीज म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया जाए। पंडित नेहरू ने इसके विरुद्ध 13 जनवरी, 1952 के अपने पत्र में कहा, ‘मैं इस बुल को जनता के देखने के लिए प्रमुखता से प्रदर्शित करना चाहूंगा। मुझे इसे एशियन एंटीक्वीटीज म्यूजियम के अंधेरे में इसे दफन करने का विचार पसंद नहीं है।’ उन्होंने यह भी कहा कि वे इस ऐतिहासिक टुकड़े को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होने देना चाहते क्योंकि, ‘यह बहुत अमूल्य और कीमती है।’
चर्चा के अनेक दौर के बाद अंतत: यह समाधान निकाला गया कि रामपूर्व बुल को आंगन के सामने के भाग, जो कि दो सेंट्रल पिलर्स के ठीक बीच में है, प्रदर्शित किया जाए। यह स्थान उसे मौसम से भी बचाएगा और जनता की भीड़ में प्रदर्शन के लिए एक केंद्रीय स्थान भी प्रदान करेगा। उस समय यह भी निर्णय लिया गया कि बुल को दो फुट से कम ऊंचे तख्त पर रखा जाए।